जानिए शिवपुरी का इतिहास शिवपुरी की ऐतिहासिक पृष्ठ भूमि history of shivpuri
घने जंगलों से आच्छादित प्राकर्तिक सुषमा के धनी शिवपुरी का लिपिबद्ध इतिहास कहीं भी उपलब्ध नहीं है, और न ही ऐसे कोई पूर्ण साक्ष्य हैं जिनके आधार पर हम इसका एक सुनिश्चित क्रमबद्ध इतिहास प्रस्तुत कर सकें, फिर भी अल्प सूचनाओं और कुछ अभिलेखनीय साक्ष्यों के आधार पर हम इसके अतीत में झांकने का प्रयास कर रहे हैं।
शिवपुरी का प्राचीन नाम "सीपरी" था जो पौराणिक एवं महाभारत के प्रसिद्ध राजा नल के अधिकार क्षेत्र वाले भू भाग का एक मामूली कस्बा था। राजा नल की राजधानी नलपुर थी जिसे वर्तमान में नरवर के नाम से जाना जाता है। तत्पश्चात ( 272-330 ईसा पूर्व में ) मौर्य सम्राट अशोक इसके इतिहास की क्रमबद्धता में आता है, दूसरी शाताब्दी ईसापूर्व में कौशिकी पुत्र कृष्ण रक्षित एवं शुंग शासकों के नाम और संधर्भ उल्लेखित हैं। राजवंशीय इतिहास के क्रम में चेहरात वंश के अंतिम शासक छत्रज नहपान ( जिनके गौतिमी पुत्र सातकर्णी द्वारा पुनर्मुद्रित सिक्के शिवपुरी से प्राप्त हैं ) तथा कुषाण शासक विमकड फिफेस के भी अस्पष्ट साक्ष्य इस भू भाग से प्राप्त हैं।
दूसरी शाताब्दी पूर्व के अंत मे ग्वालियर-विदिशा क्षेत्र में नागराज वंश का उदय हुआ जिनके सिक्के इस क्षेत्र से प्राप्त हुए। अतः इस आधार पर शिवपुरी-गुना क्षेत्रों पर नागवंश के आधिपत्य की पूर्ण संभावना है। गुप्त वंश ( 319-495 ई ) के शासकों के सिक्के एवं प्रस्तर लेख इन भूभागों से प्राप्त हैं जिनके आधार पर यहां गुप्त सम्राटों का शासक होना अनुमानित है। ई. 515 से 530 तक हूण शासक मिहिर कुल, का अधिकार इन क्षेत्रों पर रहा जिनके द्वारा गोप पर्वत पर सूर्य मंदिर के निर्माण का उल्लेख है।
दशवीं शाताब्दी के मध्य से बारहवीं सताब्दी के प्रारम्भ तक ग्वालियर एवं उसके आसपास का क्षेत्र कचछ्यघात ( कछवाहा ) राजवंश द्वारा शासित रहा।
तेरहवीं शाताब्दी के प्रारंभ के नलपुर ( नरवर ) में यज्वपाल वंश प्रभावी हुआ। इस वंश के सती प्रस्तर, कूप लेख एवं स्मारक, स्तम्भ आदि इस क्षेत्र से प्राप्त है। गणपति इस वंश का अंतिम शासक था, जिसने चंदेलों को परास्त किया। इसके पश्चात इन भूभागों पर मालवा एवं दिल्ली के सुल्तानों के आक्रमण प्रारम्भ हो गये।
मुगलों के शासनकाल में शिवपुरी मालवा सूवा नरवर का सदर मुकाम था। सत्रहवीं सताब्दी में अकबर ने आमेर के निष्कासित राजा कछवाहा वंश के आसकरण को नरवर, जागीर में दिया था।
सम्राट शाहजहाँ के शासनकाल में अमर सिंह कछवाहा बागी शहजादा खुसरो की तरफ हो गया था। इसलिए तत्कालीन नरवर जिला व सीपरी उसके हाथ से निकल गये थे। लेकिन फिर बाद में सीपरी व कोलारस की जागीर उसे पुनः प्राप्त हो गयी थी। इसी वंश के राजा अनूपसिंह को मुगल बादशाह बहादुर शाह ने नरवर का जागीरदार बनाया। राजा अनूपसिंह के मंत्री खांडेराव थे जिनकी कुशल प्रशासनिक क्षमता तथा शौर्य की गाथा " खांडेराव रासो" नामक प्राचीन ग्रंथ में देखने को मिलती है। यह ग्रंथ अभी तक अप्रकाशित है और इसकी पांडुलिपि श्री रामसिंह जी वशिष्ठ ( शिवपुरी ) के पास उपलब्ध है। सन 1709 में राजा अनूपसिंह की मृत्यु के बाद उनके पुत्र राजा गजसिंह का राज्याभिषेक शिवपुरी में हुआ
सन 1804 में शिवपुरी पर सिंधिया वंश का अधिपत्य हो गया था जिसे उन्होंने जादो साहब इंगले को जागीर में दे दिया था। सन 1817 में पूना की संधि के अनुसार यह अंग्रेज़ो के अधिकार क्षेत्र में आ गया था। लेकिन एक वर्ष बाद सन 1818 में सिंधिया को वापिस मिल गया। सन 1865 में यहाँ अंग्रेज सैनिक छावनी स्थापित कर दी गयी जो लगातार 40 वर्षों तक कायम रहते हुए सन 1906 में हटा ली गई। सन 1903 में शिवपुरी को जिला मुख्यालय बनाया गया। इसके पूर्व नरवर जिला था।
ग्वालियर दरबार के विदेश विभाग की विज्ञप्ति दिनांक 5.10.1919 के अनुसार इसके पूर्व नाम सीपरी को बदलकर शिवपुरी कर दिया गया। यह विज्ञप्ति राजकीय अभिलेखाकार भोपाल में आज भी सुरक्षित है। 1948 में मध्यभारत बनने से पूर्व तक यह सिंधिया वंश के अधीन रहा।
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