Scindia Chhattri सिंधिया राजघराने की क्षत्रियाँ
सिंधिया वंश के प्रायः सभी शासक इस नगरी की प्राकर्तिक सुषमा से प्रभावित थे। स्वर्गीय महाराजा माधवराव सिंधिया ने तो अपनी माताजी जीजाबाई (संख्या राजे सिंधिया) की छत्री बनबाने के लिए इसी नगरी को चुना। सफेद पत्थर से बनी इस छत्री में कारीगरों ने अपनी शिल्पकला की अनूठी छाप अंकित की है। श्री सिंधिया ने अपनी माताजी की मूर्ति स्थापना के समय स्वयं को भी यहीं अपनी माताजी के समीप बने रहने की इच्छा प्रकट की थी। उनकी योजना कर अनुसार ही उनके दिवंगत होने बाद यहीं जीजाबाई छत्री के सम्मुख उनकी छत्री बनवाई गई। इस छत्री की नींव 6 जनवरी 1926 को जीवाजी राव सिंधिया ने रखी तथा एक्जीक्यूटिव इंजीनियर हसमत उल्ला खां तथा इंजीनियर एस. एन. भादुरी ने इसे सन 1933 में पूर्ण किया। इसमें 81 स्वर्ण शिखर हैं।
ताजमहल की तरह इन छत्रियों का निर्माण एक विशाल उद्यान के ठीक बीचोंबीच किया गया है। इस उद्यान में विभिन्न प्रकार के पेड़ पौधे, लताऐं, पुष्प, सरोवर, पत्थर की कलात्मक पुल, बेंच तराशी हुई झाड़ियों की बागड़ हरी मखमली दूब और पानी के फब्बारों ने इन छत्रियों की शोभा में चार चांद लगा दिए हैं। इस उद्यान में सूरज की किरणों के आधार पर समय का बोध कराने वाली एक धूप घड़ी भी पर्यटकों के कोतुहल का प्रमुख केंद्र है।
माधौमहाराज की कि छत्री के निर्माण में यद्यपि प्राचीन और आधुनिक पद्धति का सम्मिश्रण है किन्तु ताजमहल और एतमादुदौला के मकबरों की पच्चीकारी का अनुसरण स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है। सफेद संगमरमर पर की गई कलाकारी और बेलवूटों की कढ़ाई मुस्लिम कला और हिन्दू सभ्यता के एकाकार रूप का उत्कृष्ट उदाहरण है।
स्व. माधवराव सिंधिया की छत्री और जीजाबाई की छत्री के मध्य एक विशाल जलाशय है और जलाशय के ठीक बीचों बीच एक छोटा सा शिवमंदिर तथा स्फटिका शिला का नादिया स्थित है। घन के आकार का पतला सा कृत्रिम कलात्मक पुल इस शिवमंदिर को जलाशय के चारों ओर किनारों पर जोड़ता है। छत्री नगर से मात्र 2 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
छतरी अलंकृत संगमरमर की कारीगरी का उत्कृष्ट नमूना है।छतरी में प्रवेश करते ही विधवा रानी महारानी सख्या राजे सिंधिया की स्मृति में समाधि स्थल है। उसके ठीक सामने तालाब और उसके बाद सामने ही माधव राव सिंधिया का समाधि स्थल बना है। इनके बुर्ज मुग़ल और राजपूत की मिश्रित शैली में निर्मित हैं। इन समाधि स्थलों में संगमरमर और रंगीन पत्थरों की कारीगरी उत्कृष्ट एवं अद्वितीय है। इसी तालाब के एक ओर राम ,सीता और लक्ष्मण का मंदिर और मंदिर के बाहर हनुमान जी खड़े हैं। इस मंदिर के ठीक सामने तालाब के उस पार राधा -कृष्णा का मंदिर है।
छत्री का निर्माण ग्वालियर नरेश श्री माधौ महाराज ने अपनी माता की स्मृति में कराया था। बाद में माधौ महाराज की स्मृति में एक और छत्री का निर्माण हुआ। इस तरह माता और पुत्र की छत्रियां आमने सामने हैं। यह स्थल एक पुत्र का अपनी माता के प्रति अटूट प्रेम का प्रतीक है।
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